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    नेता जी सुभाष चन्द्र बोस की जीवनी | Subhash Chandra Bose Biography

    By Rose13/08/2022
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    सुभाष चन्द्र बोस की जीवनी
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    भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में जिन लोगों ने अपना अहम् योगदान दिया उनमें से एक है Subhash Chandra Bose जी. जिन्हें नेता जी के नाम से जाना जाता था. हमारी पोस्ट Subhash Chandra Bose Biography In Hindi यानी सुभाष चन्द्र बोस की जीवनी में हम आपको देंगे उनका पूरा जीवन परिचय.

    सुभाष चन्द्र बोस जी के पूरे जीवन और उनके साथ घटी घटनाओं पर हम प्रकाश डालने की कोशिश करेंगे. ये भी एक कटु सत्य है की भारतियों ने जितनी अहमियत महात्मा गाँधी जी और नेहरु जी को दी उसका आधा भी सुभाष चन्द्र बोस जी को नहीं दिया. सुभाष चन्द्र बोस जी का जीवन परिचय जानने के बाद आप भी इस बात से सहमत होंगे.

    हम उन्हें एक ऐसे अभाग्यशाली नेता और वक्ता समझते हैं जिन्हें उनके द्वारा किये गए कार्यों के लिए बहुत ही कम तारीफ़ मिली. ये हमारा खुद का नजरिया है, बाकी हर व्यक्ति की अपनी एक अलग सोच होती है. कोई भी कुछ भी सोचने और समझने के लिए स्वतंत्र है.

    आज हम सब लोग जो नारा “जय हिन्द” बड़े ही गर्व के साथ लगाते हैं. जिसकी गूँज सुनते ही हमारा सीना चौड़ा होने लगता है और मन देशभक्ति से औत प्रोत हो जाता है, ये नारा हमें नेता जी ने ही दिया था. उन्होंने लोगों के दिलों में स्वतंत्रता की आग पैदा करने का काम किया था.

    खैर चलिए जानते हैं Subhash Chandra Bose जी का जीवन परिचय. जानते हैं उनके जीवन के बारे में, बचपन से लेकर उनके आखिरी समय तक. कैसे बिताया उन्होंने अपना पूरा जीवन और कौनसे कौनसे कार्य किये उन्होंने देश हित में.

    Subhash Chandra Bose Biography In Hindi – सुभाष चन्द्र बोस की जीवनी

    सुभाष चन्द्र बोस का जीवन परिचय आपको देना हमारे लिए एक सौभाग्य की बात है. क्योंकि ऐसे नेता बार बार पैदा नहीं होते. उनकी अपनी कुछ अलग नीतियाँ थी, जो बहुत से लोगों को पसंद भी नहीं थी जिनमें कुछ बड़े नामी व्यक्ति भी थे.

    पर इस सच्चाई से भी कोई नहीं भाग सकता की उन्होंने काफी त्याग और मेहनत की. देश के स्वतंत्रता संग्राम में उनका बहुत ही अहम् योगदान था. कैसे और कहाँ से शुरू हुआ उनकी ज़िन्दगी का सफ़र चलिए जानते हैं.

    सुभाष चन्द्र बोस जी का जन्म एक बहुत ही बड़े परिवार में हुआ था. उनका जन्म उड़ीसा के कटक में 23 जनवरी 1897 को हुआ था. उनके पिताजी पेशे से वकील थे जिनका नाम जानकीनाथ था. वो भी बहुत ही कर्मठ व्यक्ति थे. उनकी माता का नाम प्रभावती देवी था.

    वो बहुत ही सीधी सरल और अपने धर्म में पूरा विश्वास रखने वाली महिला थीं. उनके विचार बहुत ही प्रभावी थे और उनकी भगवान् में पूरी आस्था थी. जानकीनाथ और प्रभावती देवी जी की 14 संतान थी. आप समझ सकते हैं की बहुत ही बड़ा परिवार था.

    सुभाष चन्द्र बोस की जीवनी आप सब के लिए बहुत ही रोचक होने वाली है. अपने सभी भाई और बहनों में नेता जी नौवें नंबर पर आते थे. उनके 7 भाई और 6 बहनें थी. वैसे तो नेता जी का व्यवहार अपने सभी भाई बहनों के साथ अच्छा था, वो मिल जुलकर रहते थे.

    लेकिन अपने एक भाई से उनको कुछ ज्यादा ही लगाव था जिनका नाम शरदचंद्र था. उनके विचार आपस में काफी मिलते जुलते थे और दोनों एक दुसरे की बातों से सहमत रहते थे. सुभाष जी पढाई में शुरू से अच्छा प्रदर्शन कर रहे थे. उन्होंने Graduation किया और वो भी काफी अच्छे नम्बरों के साथ परीक्षा पास की.

    नेता जी ने दर्शन शास्त्र में स्नातक की डिग्री हासिल की. जिस कॉलेज से उन्होंने ये डिग्री हासिल की थी उसका नाम स्कॉटिश चर्च कॉलेज था और वो कलकत्ता में था. कुल मिलाकर कहा जाए तो सुभाष चन्द्र बोस जी की शिक्षा काफी अच्छे तरीके से हुयी.

    नेता जी को भारतीय सेना से बड़ा लगाव था. उनकी गहरी इच्छा थी की वो Indian Army में जरूर शामिल हों. इसके लिए अपनी तरफ से वो पूरी मेहनत कर रहे थे. वो भर्ती में शामिल भी हुए पर उनकी आँखों की कुछ समस्या के कारण उन्हें बाहर कर दिया गया था. ये बात है लगभग सन 1918 की.

    उसके बाद अपने घर वालों से विचार विमर्श करने के बाद वो अपनी आगे की पढाई के लिए इंग्लैंड चले गए. वहां पर उन्हें भारतीय प्रसाशनिक सेवा यानी Indian Civil Services की तैयारी करनी थी. उन्होंने इंग्लैंड के कैंब्रिज यूनिवर्सिटी में दाखिला ले लिया.

    उस समय इंग्लैंड में रहते हुए किसी भारतीय द्वारा सिविल सर्विस की तैयारी कोई आसान काम नहीं था. लेकिन सब परेशानियों के बावजूद नेता जी ने परीक्षा को ना सिर्फ सफलतापूर्वक पास किया, बल्कि उस परीक्षा में उन्होंने चौथा स्थान हासिल किया था. जो की कोई छोटी बात नहीं थी.

    इसीलिए कहा जाता है Subhash Chandra Bose Biography से हमें काफी प्रेरणा मिल सकती है. ये तो सिर्फ शुरुआत है, उसके बाद भारत में चल रही उठा पटक ने उनका ध्यान खींचा. खासकर उस वक़्त हुए जलियांवाला बाग़ हत्याकांड में लोगों की जो जानें गयी उससे वो काफी आहत हो गए थे.

    सुभाष चन्द्र बोस की जीवनी

    उनके मन में गहरी मंत्रणा चलने लगी और 1921 में प्रशाशनिक सेवा से इस्तीफा देने की ठान ली और ऐसा कर भी दिया. नेता जी स्वामी विवेकान्द जी से काफी प्रभावित थे और उनके अनुयायी बन गए थे. उन्होंने देश के लिए कुछ करने की चाह में राजनीति में प्रवेश करने की सोची.

    सुभाष चन्द्र बोस जी का जीवन परिचय व राजनितिक सफ़र

    वो भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस में शामिल हो गए जो देश की सबसे बड़ी पार्टी थी. यही वो समय था जब वो महात्मा जी के संपर्क में आये. गांधी जी के निर्देशानुसार उन्होंने पार्टी के लिए काम करना शुरू किया. उनकी मेहनत और उनके द्वारा किये गए कार्यों के चलते वो बहुत ही जल्दी कांग्रेस के बड़े नेताओं में गिने जाने लगे थे.

    लेकिन वहीँ से एक बड़ी गड़बड़ होना भी शुरू हो गयी थी. वो थी नेता जी के विचार गाँधी जी के साथ ना मिलना. सुभाष चन्द्र बोस गाँधी जी द्वारा किये जा रहे फैसलों से खुश नहीं रहते थे. जो नीतियां गाँधी जी अपना रहे थे उनसे वो तनिक भी खुश नहीं थे.

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    सुभाष चन्द्र बोस की जीवनी पढने पर हमें पता चलता है की उनके और गाँधी के सम्बन्ध लम्बे समय तक ठीक नहीं रहे. सन 1928 के वार्षिक अधिवेशन में अंग्रेजों को Domainiun Status देने के लिए 1 साल का टाइम दिया गया. उसमें भारतियों की तरफ से पूर्ण स्वरांज की मांग थी.

    लेकिन गाँधी जी उसमें बार बार रोड़ा बन रहे थे क्योंकि गाँधी जी पूर्ण स्वराज की मांग से पता नहीं क्यों नहीं सहमत हो रहे थे. जबकी सुभाष चन्द्र बोस जी पीछे हटने को बिलकुल तैयार नहीं थे. वो अड़कर बैठ गए, ऐसी ही कुछ बातों के चलते गाँधी जी और नेता जी में कुछ मतभेद भी हो गए थे.

    वास्तव में नेता जी एक जोश से भरे और क्रांतिकारी सोच वाले नेता थे. इसके ठीक उलट महात्मा गांधी जी उदारवाद में ज्यादा विश्वास रखते थे. लेकिन इतना सब होने के बाद भी उन्होंने आपस में समझौता कर लिया था और साथ काम करते रहे. क्योंकि आखिर उन दोनों का मकसद एक ही था, और वो था “भारत की आज़ादी”.

    कहते हैं की गाँधी जी उस वक़्त नेता जी से थोडा कटने लगे थे. क्योंकि उनके विचार बिलकुल ही अलग थे. लेकिन नेता जी फिर भी गाँधी जी को उतना ही मानते थे जितना पहले. आपको शायद पता नहीं होगा की महात्मा गाँधी को “राष्ट्रपिता” सबसे पहले नेता जी ने ही कहा था बातों बातों में.

    सन 1930 में नेता जी अपनी तरफ से एक Independence League का गठन किया और उस समय एक आन्दोलन में उन्होंने अग्रेजी नियमों की अवहेलना की. जिसके चलते उन्हें गिरफ्तार करके जेल में डाल दिया गया था. 7-8 महीने उन्होंने जेल की हवा खायी.

    उसके बाद 1931 में गाँधी जी और इरविन के बीच एक समझौता हुआ जिसके परिणामस्वरूप नेता जी को छोड़ दिया गया. लेकिन जेल से छूटने के बाद भी वो खुश नहीं थे क्योंकि गाँधी जी ने समझौते में अंग्रेजों की काफी शर्तें मानी और आन्दोलन को वापिस लेने का भी फैसला कर लिए था. ये सब नेता जी को पसंद नहीं आया.

    सुभाष जी दोबारा अपने कार्यों में व्यस्त हो गए और अंग्रेजी हुकूमत के विरूद्ध चलने पर उन्हें फिर से जेल में डाल दिया गया. जेल में रहते रहते उन्हें लगभग 1 साल हो गया था. अचानक उनकी तबियत वहां बिगड़ने लगी. जिसके चलते उन्हें छोड़ दिया गया पर यहाँ से सीधा युरोप भेज दिया गया.

    पर Subhash Chandra Bose जी की Life के बारे में जानने वालों का कहना है की नेता जी वहां भी शांत नहीं बैठे. उन्होंने शहर शहर जाकर अपने विचारों से भारतीय युवाओं को सम्बोधित किया और उनमें स्वतंत्रता संग्राम की ज्वाला पैदा की. खैर समय बीतता गया और भारत में चुनाव हुए जिनमें 7 राज्यों में कांग्रेस की सरकार बनी.

    नेता जी को बुलावा भेजकर वापिस भारत बुलाया गया और 1938 में हरिपुर अधिवेशन के दौरान उन्हें कांग्रेस का अध्यक्ष नियुक्त किया गया. उसके बाद वो अपने काम के प्रति और ज्यादा समर्पित गए. इसके चलते उन्होंने राष्ट्रीय योजना आयोग का गठन करने का फैसला किया.

    इस आयोग के लिए उन्होंने जो नीतियां अपनायीं वो महात्मा गाँधी जी के विचारों से कोई मेल नहीं खाती थी. 1939 में गाँधी जी द्वारा खड़े किये गए एक प्रतिद्वंदी को जब सुभाष चन्द्र बोस जी ने हरा दिया तो गाँधी जी का एक हैरान करने वाला बयान सामने आया. पहली बार उन्होंने नेता जी के विरोध में खुलकर बयान दिया.

    उन्होंने कहा की ये सुभाष की जीत नहीं बल्कि मेरी हार है. गाँधी जी नेता जी के फैसलों से कतई खुश नहीं थे, उन्हें उनका काम करने का तरीका पसंद नहीं आ रहा. जबकि सुभाष चन्द्र बोस जी का कहना था की जो काम आसानी से दुसरे तरीके से हो सकता है उसमें भी गाँधी जी के हस्तक्षेप के चलते बहुत समय लग रहा है.

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    चूँकि उस समय गाँधी जी का कद बहुत बड़ा था. उनके द्वारा उनका लगातार विरोध किया जाता रहा. इसलिए परेशान होकर नेता जी ने Congress अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया. ताकि अंग्रेज भारत में भारतियों की फूट का तमाशा ना देखें. अब नेता जी हर तरह से गाँधी जी के बंधन से मुक्त थे.

    वो अपने तरीके से कुछ भी करने को स्वतंत्र थे. कुछ ही समय बीता होगा की दूसरा विश्व युद्ध शुरू हो गया. बस सुभाष चन्द्र बोस तो जैसे इसी मौके की तलाश में थे. वो गाँधी जी से मिले और उन्हें अपने विचारों से अवगत कराया की किस प्रकार हम इस मौके का फायदा उठा सकते हैं और जल्दी ही आज़ादी का जश्न मना सकते हैं.

    उनका कहना था की हमें इस वक़्त अंग्रेजों के दुश्मनों के साथ मिलना चाहिए जिसके बदौलत इन्हें यहाँ से आसानी से खदेड़ा जा सकता है. इस तरह से अपनी और भी बहुत सी योजनायें बताई. लेकिन जैसा की सुभाष चन्द्र बोस की जीवनी से जानने को मिलता है की गाँधी जी को उनके विचार बिलकुल पसंद नहीं थे.

    वो उनकी बातों से सहमत नहीं हुए. इसी दौरान जब अंग्रेजों को नेता जी की योजना के बारे में भनक लगी तो उन्होंने उन्हें पकड़कर कलकत्ता की किसी जेल में नज़रबंद कर दिया. लेकिन किसी तरह से अपने भतीजे की मदद से वो वहां से भागकर सीधे अफगानिस्तान पहुँच गएँ.

    अब उन्होंने खुद ही कुछ करने का निर्णय लिया और वहां से सीधा जर्मनी के लिए कूच किया. प्रथम विश्व युद्ध के बाद England ने जर्मनी पर अपने कई बेरहम फैसले थोपे थे. जर्मनी में अंग्रेजों के प्रति गुस्से का भाव था. उस समय जर्मनी का मुख्य शासक हिटलर था जिसमें अंग्रेजों के प्रति घृणा कूट कूट कर भरी हुई थी.

    यही बात नेता जी को हिटलर से दोस्ती करने को प्रेरित कर रही थी. क्योंकि भारत में भी अंग्रेज कुछ इसी तरह का काम कर रहे थे और जबरदस्ती शासन कर रहे थे. नेता जी को लगा की हिटलर की मदद से अंग्रेजो को भारत से बाहर निकाला जा सकता है.

    नेता जी इस बात से भली भाँती वाकिफ थे की अपने दुश्मन के दुश्मन से दोस्ती करना आपके दुश्मन को काफी  कमजोर कर देता है. उनका यही मानना था की गाँधी जी की तरह हर बात पर हाथ जोड़ने से कुछ नहीं होने वाला. आज़ादी प्राप्त करने के लिए सैन्य बल और कूटनीति इन दोनों की जरूरत होगी.

    नेता काफी समय तक जर्मनी में रहे, हिटलर को अपने विचारों से वाकिफ कराया और अपने कामों में व्यस्त रहे. उन्होंने 1937 में शादी की थी. उनकी पत्नी एक ऑस्ट्रिया महिला थी जिनका नाम एमिली था. दोनों को एक संतान भी हुयी जिसका नाम अनीता है.

    अनीता का परिवार अभी भी जर्मनी में ही रहता है. नेता जी 1943 में ही जर्मनी छोड़कर जापान चले गए. उसके बाद सिंगापुर जाकर उन्होंने आज़ाद हिंदी फौज की कमान अपने हाथों में ले ली. आपको बतादें की आज़ाद हिन्द फौज का गठन कप्तान मोहन सिंह ने किया था. बाद में नेता जी ने अपने सपने को साकार करने के लिए उस पर काफी मेहनत की.

    आज़ाद हिन्द फौज को उन्होंने अपना सब कुछ मान लिया था. यही नहीं महिलाओं के लिए भी एक फौज का गठन किया गया जिसका नाम रानी झांसी रेजिमेंट रखा गया था. अपने भाषणों से नेता जी ने आज़ाद हिन्द फौज के जवानों में काफी जान फूंकी.

    4 जुलाई 1944 को नेता जी अपनी फौज के साथ बर्मा पहुंचे. वहीँ पर उन्होंने सम्बोधित करते हुए “तुम मुझे खून दो, मै तुम्हे आज़ादी दूंगा” का नारा दिया. उन्हें लोगों का भारी समर्थन हासिल हो रहा था. उन्हें बस अपना सपना जल्दी ही पूरा होता हुआ नज़र आ रहा था.

    इसी दौरान उन्हें 18 अगस्त 1945 को अपने किसी काम के चलते जापान जाना था. लेकिन उन्हें शायद नहीं पता था की ये उनकी ज़िन्दगी का आखिरी दिन होगा. जापान जाते हुए रास्ते में ताइवान शहर के नज़दीक उनका विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया. जिसके चलते उनकी मृत्यु हो गयी.

    हालांकि इस बात पर गौर करना जरूरी है की उनका शव कहीं नहीं मिला. यही वजह है की सुभाष चन्द्र बोस जी की मृत्यु पर अब भी एक सवाल बना हुआ है. बहुत से लोग इस पर आवाज़ भी उठाते रहते हैं. लेकिन अभी तक सबको यही बताया जाता है की उनकी मृत्यु उसी विमान हादसे में हुयी.

    नेता जी अपने जीवन में सिर्फ एक चीज़ को अपने दिमाग में लेकर जीते रहे, वो थी आज़ादी. बहुत सारे लोग उनसे खफा भी रहते थे, लेकिन एक बड़ा वर्ग उनका बहुत बड़ा समर्थक भी था. उनकी मृत्यु के ठीक 2 साल बाद 15 अगस्त 1947 को भारत आज़ाद भी हो गया.

    हमें इस बात का बहुत दुःख है की नेता जी जीवित रहते हुए अपना सपना पूरा होते हुए नहीं देख सके. लेकिन देशभक्ति और उनके जज्बे पर हमें किसी तरह से कोई शक नहीं है. वो जब तक जीये देश के लिए जिए, हमारा सलाम है उनको, झुककर नमन करते है उन्हें.

    वे एक ऐसा व्यक्तित्व थे जिसके मुराद लाखों करोड़ों लोग थे. हर कोई उन्हें पसंद करता था. वो कभी भी इस चक्कर में नहीं रहे की उन्हें कोई बहुत बड़ा नेता बनना है. उनका लक्ष्य तो मात्र एक ही था, और वो था आज़ादी. चाहे फिर वो किसी भी तरह से मिले. स्वतंत्र विचारों के होने के कारण कई बड़े लोग उनसे नफरत करते थे.

    इन्हें भी पढ़ें –

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    • प्रसिद्ध भाषा हिंदी का इतिहास और महत्व
    • इंदिरा गाँधी का सम्पूर्ण जीवन परिचय
    • परीक्षा में टॉप करने के तरीके व टिप्स

    तो ये थी सुभाष चन्द्र बोस की जीवनी – Subhash Chandra Bose Biography In Hindi जिसमें हमने आपको उनका पूरा जीवन परिचय दिया है. पोस्ट को दूसरों तक पहुँचने में हमारी मदद करें इसलिए Share जरूर करें. हमारे साथ जुड़ने के लिए हमारे Facebook Page को जरूर Like करें व हमें Subscribe करलें. धन्यवाद.

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